नई दिल्ली। केंद्र सरकार बासमती चावल के न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) में कटौती करने पर गंभीरता से विचार कर रही है, जिससे भारतीय बासमती चावल की प्रतिस्पर्धात्मकता वैश्विक बाजार में बढ़ सके और निर्यात को बढ़ावा मिल सके। वर्तमान में बासमती चावल का एमईपी 950 डॉलर प्रति टन (MEP of Basmati rice $950 per ton) है, लेकिन कई किस्मों की कीमतें अब इस स्तर से नीचे आ गई हैं, जिससे व्यापारियों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। ऐसे में सरकार के इस संभावित कदम से बाजार में एक नई उम्मीद की किरण जागी है।
मंडी में गिरावट और उत्पादन में उछाल:
बासमती चावल (Basmati Rice) के निर्यात में गिरावट के चलते मंडियों में स्टॉक की भरमार हो गई है, और इसके परिणामस्वरूप दाम भी गिर गए हैं। उदाहरण के लिए, 1509 बासमती धान का मौजूदा मंडी रेट 2500 रूपये प्रति क्विंटल है, जबकि पिछले साल यह 3000 रूपये प्रति क्विंटल था। इसके साथ ही, पूसा 1121 की नई फसल भी बाजार में आने को तैयार है, जो पिछले साल की तुलना में और भी कम कीमत पर बिक सकती है। पंजाब में इस साल बासमती धान की खेती के रकबे में 12% की वृद्धि हुई है, जिससे उत्पादन में भी 10% से अधिक की वृद्धि का अनुमान है।
एमईपी में कटौती का प्रभाव:
पिछले साल अक्टूबर में एमईपी को 1200 डॉलर प्रति टन से घटाकर 950 डॉलर प्रति टन किया गया था। निर्यातकों का मानना है कि यदि एमईपी में और भी कटौती की गई, तो इससे घरेलू बाजार में बासमती चावल की कीमतों पर दबाव पड़ेगा। इससे कीमतों में गिरावट हो सकती है, क्योंकि भारत में 70 लाख टन बासमती चावल में से केवल 20 लाख टन ही घरेलू खपत के लिए उपयोग में आता है, बाकी का निर्यात किया जाता है।
निर्यात में हो रही है वृद्धि:
चमन लाल सेतिया एक्सपोर्ट्स के प्रबंध निदेशक विजय सेतिया ने बताया कि पिछले साल 5.83 बिलियन डॉलर मूल्य के 50 लाख टन से अधिक सुगंधित चावल का निर्यात किया गया था। इसी तरह, 2024-25 के अप्रैल-मई के दौरान 9 लाख टन से अधिक बासमती चावल का निर्यात हुआ, जो पिछले साल की तुलना में 15% अधिक है। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि वैश्विक बाजार में भारतीय बासमती चावल की मांग (Demand for Indian Basmati rice in global market) स्थिर है, और एमईपी में कटौती से इस मांग में और भी तेजी आ सकती है।
भारत की बासमती चावल की खेती और वैश्विक हिस्सेदारी:
भारत की बासमती चावल की खेती मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और उत्तराखंड के 70 से अधिक जिलों में होती है। वैश्विक सुगंधित चावल बाजार में भारत की हिस्सेदारी 75 से 80% है, जबकि पाकिस्तान की हिस्सेदारी केवल 20% के आसपास है। इस बड़े बाजार में अपनी स्थिति को और भी मजबूत बनाने के लिए एमईपी में कटौती एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
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सरकार के इस संभावित फैसले पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं, क्योंकि यह कदम भारतीय बासमती चावल की वैश्विक प्रतिस्पर्धा को नए आयाम दे सकता है। अब देखना यह होगा कि सरकार इस पर क्या अंतिम निर्णय लेती है, और यह निर्णय भारतीय किसानों और व्यापारियों के लिए कितना फायदेमंद साबित होता है।