(Source- Indian Express)
CSDS-Lokniti 2024 Pre-Poll Survey: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले सीएसडीएस-लोकनीति प्री पोल सर्वे के नतीजे आए हैं। इनसे कई संकेत मिल रहे हैं। एक संकेत चुनाव से जुड़े मुद्दों के बारे में भी मिल रहा है। सर्वे के नतीजों से यह सामने आया है कि चुनाव में तीन सबसे बड़े मुद्दे बेरोजगारी, महंगाई और विकास हैं। राम मंदीर, हिंदुत्व जैसे मुद्दे जनता की नजर में गौण हैं।
चुनाव में क्या हैं प्रमुख मुद्दे?
लोकनीति-सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) के चुनाव पूर्व सर्वे में लोगों से उन मुद्दों की पहचान करने के लिए कहा गया जो उन्हें लगता है कि चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण है। सूची में तीन सबसे बड़े मुद्दे सामने आए- बेरोजगारी, महंगाई और विकास। जहां विकास की बात करने वाले उत्तरदाताओं का झुकाव भाजपा की ओर हो सकता है, वहीं बेरोजगारी और महंगाई पर मतदाताओं की चिंता बीजेपी के लिए खतरे का संकेत हो सकती है।

महंगाई का क्या है हाल
लोकसभा चुनाव से पहले खाना और घर बनाना महंगा हो गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च में शाकाहारी थाली की कीमत 7ः बढ़कर 27.3 रुपये हो गई है जबकि मार्च 2023 में यह 25.5 रुपये थी। क्रिसिल रेटिंग एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस अवधि में मांसाहारी थाली की कीमत 59.2 रुपये से 7ः कम होकर 54.9 रुपये हो गई। इस बीच सीमेंट कंपनियों ने भी सीमेंट के दाम बढ़ा दिये हैं, जिसके कारण घर बनाना महंगा हो गया है। सीमेंट की 50 किलोग्राम की बोरी के दाम 10-40 रुपये तक बढ़ गए हैं। उत्तर भारत में सीमेंट के दाम 10-15 रुपये प्रति बोरी बढ़ गए हैं। मध्य भारत में यह रेट 30-40 रुपये प्रति बोरी बढ़ा है। वही, पश्चिम भारत में यह रेट 20 रुपये प्रति बोरी बढ़ा है। दिल्ली के बाजार में प्रमुख खाद्य पदार्थों के रिटेल प्राइज कुछ इस प्रकार हैं।

बेरोजगारी पर क्या कहती है आईएलओ की रिपोर्ट
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की एंप्लॉयमेंट इंडिया रिपोर्ट, 2024 बताती है कि भारत की लगभग 83ः बेरोजगार वर्कफोर्स 30 साल से कम उम्र के हैं। 2019 की स्टडी के साथ वर्तमान रिजल्ट की तुलना करें तो 2019 में 11ः से बढ़कर 2024 के सर्वे में 27ः उत्तरदाता बेरोजगारी को सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा मानते हैं।
भारत में शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी बढ़ी है। पिछले 22 साल में माध्यमिक या उससे ऊपर की शिक्षा प्राप्त बेरोजगार युवाओं की संख्या बढ़ी है। साल 2000 में सभी बेरोजगारों में शिक्षित युवाओं की हिस्सेदारी 54.2 प्रतिशत थी, जो 2022 में बढ़कर 65.7 प्रतिशत हो गई। माध्यमिक स्तर या उससे ऊपर शिक्षित बेरोजगार युवाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी 76.7 प्रतिशत और पुरुषों की 62.2 प्रतिशत है।
विकास के संकेत
आंकड़ों की बात करें वर्ल्ड GDP रैंकिंग में भारत पांचवें नंबर पर है। भारत का लक्ष्य अगले तीन साल में 5 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना है। ऐसे में भारत को 2028 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए प्रति वर्ष केवल 6ः की दर से बढ़ने की जरूरत है।
2010 से 2022 के दौरान भारत की रियल जीडीपी औसतन 5.9ः की दर से बढ़ी है। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से वास्तविक जीडीपी बढ़ने की रफ्तार 5.7ः रही है। ऐसे में साफ जाहिर है कि तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए भारत को जो रफ्तार चाहिए, वह पिछले दो दशक में नहीं रही है। भारत तुलनात्मक रूप से विकास में कमजोर रहा है। यहां तक कि 2013 और 2022 के बीच इसकी समग्र जीडीपी रैंकिंग में सुधार भी 5.7ः की औसत वार्षिक वृद्धि के कारण हुआ है, जो बहुत ज्यादा नहीं है।
भाजपा के प्रमुख फैसले
अपने दूसरे कार्यकाल में, भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने कई महत्वपूर्ण संवैधानिक परिवर्तन किए और परियोजनाएं शुरू कीं। इस संदर्भ में, आर्टिकल 370 को निरस्त करना, G-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी और समान नागरिक संहिता की योजना प्रमुख रूप से सामने आती है। CSDS-Lokniti pre poll study इस बात पर प्रकाश डालती है कि भारतीय मतदाताओं ने मौजूदा सरकार के इन कार्यों और इरादों को कैसे समझा।
केंद्र सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर के स्पेशल स्टेटस को रद्द कर दिया। सर्वे में सामने आया कि 34ः मतदाता इसे एक सकारात्मक कदम के रूप में देखते हैं, जबकि 16ः इस फैसले का समर्थन करते हैं लेकिन इसे लागू करने के तरीके पर सवाल उठाते हैं। हालांकि, 8ः मतदाता अभी भी अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से असहमत हैं। दूसरी ओर, 20ः मतदाताओं को आर्टिकल 370 के बारे में जानकारी नहीं है। वहीं, 22ः ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की।

G-20 सम्मेलन की मेजबानी
सरकार ने भारत में जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी को भी अपनी बड़ी सफलता बताया था। हालांकि, लगभग 63ः उत्तरदाताओं को शिखर सम्मेलन के बारे में जानकारी नहीं थी, जबकि लगभग 37ः ने इसके बारे में सुना था।
वहीं, जो लोग जी-20 के बारे में जानते थे उनसे शिखर सम्मेलन के नतीजे पर उनकी राय पूछी गई, तो ज्यादातर ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। 30ः का मानना था कि शिखर सम्मेलन ने भारत को अपनी बढ़ती शक्ति का प्रदर्शन करने में मदद की है। 23ः को उम्मीद थी कि जी-20 शिखर सम्मेलन देश के विदेशी व्यापार और अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा और 16ः ने इसे सरकार के लिए विदेश नीति की उपलब्धि के रूप में देखा। इसके विपरीत, 12ः इसे पैसे की बर्बादी मानते हैं और 10ः सोचते हैं कि यह राजनीति से प्रेरित है।
क्या सच में विकास सभी तक पहुंचा है?
10 में से करीब दो मतदाताओं का मानना है कि पिछले पांच वर्षों में देश में कोई विकास नहीं हुआ है। सर्वे में पाया गया कि 32ः मतदाता सोचते हैं कि पिछले पांच वर्षों में विकास केवल अमीरों के लिए हुआ है।
क्या भारत सेक्युलर देश है?
सर्वे में हिस्सा लेने वाले 79ः लोग इस विचार का समर्थन करते दिखे कि भारत सभी धर्मों का देश है न कि केवल हिंदुओं का। वहीं, 10 में से लगभग आठ हिंदुओं ने कहा कि उन्हें धार्मिक बहुलवाद (Religious Pluralism) में विश्वास है। केवल 11ः हिंदुओं ने कहा कि वे सोचते हैं कि भारत हिंदुओं का देश है। वृद्धों (73ः) की तुलना में अधिक युवा लोग (81ः) धार्मिक बहुलवाद को बढ़ावा देने के इच्छुक थे। धार्मिक सहिष्णुता पर शैक्षिक योग्यता से भी फर्क पड़ता है। 72ः अशिक्षित लोगों की तुलना में, 83ः उच्च शिक्षित लोगों ने कहा कि वे सभी धर्मों की समान स्थिति के पक्ष में थे।
सर्वे में, जब इस सरकार के सबसे अच्छे काम के बारे में पूछा गया तो 22ः से अधिक उत्तरदाताओं ने राम मंदिर के निर्माण का उल्लेख किया। लगभग आधे उत्तरदाताओं ने कहा कि मंदिर के निर्माण से हिंदू पहचान को मजबूत करने में मदद मिलेगी। 49ः पुरुषों के विपरीत 46ः महिलाओं का मानना था कि यह हिंदू पहचान को मजबूत करेगा। शहरी उत्तरदाताओं और युवाओं (52ः) की तुलना में ग्रामीण उत्तरदाताओं (50ः) ने इसे ज्यादा सही ठहराया।
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बीजेपी या कांग्रेस कहां नेपोटिज्म ज्यादा?
भाजपा लगातार वंशवाद की राजनीति, भाई-भतीजावाद और पक्षपात के लिए कांग्रेस की आलोचना करती रहती है। दिलचस्प बात यह है कि जो लोग INDIA ब्लॉक (36ः) का समर्थन कर रहे हैं और अन्य विपक्षी दल (27ः) भाजपा को समान रूप से भाई-भतीजावादी मानते हैं। दूसरी ओर, भाजपा (32ः) और उसके सहयोगी दलों (29ः) के समर्थक पार्टी को कांग्रेस की तुलना में कम भाई-भतीजावादी मानते हैं। दिलचस्प बात यह है कि गठबंधन और विपक्षी दलों में से दस में से दो को लगता है कि भाजपा कांग्रेस की तुलना में कम भाई-भतीजावादी है, जबकि भाजपा और उसके सहयोगियों में से सातवें को लगता है कि भाजपा कांग्रेस की तरह ही भाई-भतीजावादी है। इसके अलावा, लगभग एक-चौथाई बीजेपी मतदाताओं का मानना है कि बीजेपी बिल्कुल भी भाई-भतीजावादी नहीं है। मतदाताओं के एक महत्वपूर्ण हिस्से (36ः) की इस प्रश्न पर कोई राय नहीं थी, जिससे पता चलता है कि उत्तरदाताओं को या तो अच्छी तरह से जानकारी नहीं थी या उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं थी।