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800 साल पुरानी परम्परा चढ़ी परवान, दड़ा खेल में युवाओं ने दिखाया दमखम

800 year old tradition flourished, youth showed strength in Dara game

राजस्थान में बूंदी जिले के बरुंधन गांव में मकरसक्रांति के दिन अनोखे खेल का आयोजन किया जाता है। जिसकी शुरूआत करीब 800 साल पहले 15वीं शताब्दी में हाड़ा राजवंश (Hada Dynasty 800 years ago in the 15th century) के समय कि गई थी। इसके बाद हाड़ा वंश के परिवार और गांव वालों के बीच यह अनोखा खेल खेला जाने लगा। इस परंपरा को आज भी ग्रामीण बखुबी निभा रहे है। इसे दड़ा कहते है, इस दिन दड़ा महोत्सव (Dada mahotsav) का आयोजन बडे़ धुमधाम के साथ होता है। दड़ा एक भारी गेंद होती है, ये एक वजनी फुटबॉल (Football) होती है जिसे टाट और सूत की रस्सी से बनाया (made of sackcloth and cotton rope) जाता है। इस बार भी करीब 50 किलो वजनी दड़ा (50 kg weight Ball) तैयार किया गया, जिसको मुख्य बाजार में चुनौती बनाकर रखा गया। इसे खेलने के लिए दो दल बनाए गए थे, जो दल इस दड़े को अपनी तरफ ले जाने में सफल हो गया वह दल विजेता घोषित किया जाता है।

दड़ा महोत्सव को देखने उमडा जन सैलाब
बरुन्धन क़स्बे में राजा महाराजाओं के समय से चले आ रहे ऐतिहासिक खेल दड़ा महोत्सव को देखने रविवार को जन सैलाब उमड़ पड़ा। राधेश्याम दाधीच ने बताया कि ऐतिहासिक खेल दड़ा महोत्सव को देखने रविवार को जन सैलाब उमड़ पड़ा। खेल शुरुआत से पहले हाड़ा वंशज के श्याम सिंह हाड़ा ने खेल प्रेमियों को सुरापान के लिए आमन्त्रित किया। सुरापान के बाद राजपूत मोहल्ले से दड़े को लेकर मुख्य बाजार स्थित लक्ष्मीनाथ मन्दिर के सामने खेल स्थल पर पहुँचे। जहां पर श्याम सिंह हाड़ा ने दड़े की विधिवत पूजा अर्चना करके खेल की शुरुआत की।

दर्शको से अटी पड़ी रही छतें
जिसमें बरुन्धन, सीतापुरा, नावघाट का टापरा, धनातरी, अधेड़, गुमानपुरा, नमाना, भरता बावड़ी, लक्ष्मीपुरा, डोरा, गादेगाल, भवरिया कुआँ सहित अनेक गावों से लोग दड़ा महोत्सव (Dada Festival) में भाग लेने पहुँचे। ज्योहीं दड़े को मैदान में खेल के लिए उतारा, युवाओं ने जोश दिखाते हुए इस खेल के लिए हुँकार भरी। उमंग व उत्साह से भरी आवाज के साथ हु डू डू, हु डू डू की गर्जना करते हुए हर वर्ग के खिलाड़ी दड़े को खेलते हुए कभी गणेश मंदिर तो कभी लक्ष्मीनाथ मन्दिर की और ले जाते रहे। दड़े में खेल के दौरान धक्का मुक्की, खींच तान और तू तू मैं मैं चलती रही। दर्शको से अटी पड़ी छतों से महिलाएं एवं युवतियां खिलाड़ियों के लिये फब्तियां कसती रही।

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ढोल की थाप पर खिलाड़ियों का खेल के प्रति जोश बढ़ता गया। कुछ खिलाड़ियों को मामूली खरोंचे आने पर भी कोई परवाह किए बगैर बड़े उत्साह से खेल को खेल की भावना से खेलते रहे। इस दौरान युवाओं में खेल के प्रति जोश देखकर पुराने बुजुर्ग खिलाड़ी भी अपनी मूछों पर ताव देते नजर आए। करीब डेढ़ घंटे चले दड़ा महोत्सव (Dada Festival) में सैकड़ों की तादाद में ग्रामीण मौजूद रहे। इस दौरान रामनिवास मीणा, पुरुषोत्तम शर्मा, छैलबिहारी दाधीच, विष्णु राठौर, मनोज शर्मा, रवि चित्तौड़ा, जगदीश गुर्जर आदी खिलाड़ियों का उत्साहवर्धन कर रहे।

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