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हजारों लोगों ने खेला अनोखा गेम, जोर आजमाइश में ‘दड़ा महोत्सव’ पर मिला संकेत

Thousands of people played a unique game, got a hint on 'Dada Mahotsav' in a test of strength

टोंक, (रिपोर्टर चेतन वर्मा)। राजस्थान के टोंक जिले के आवां में प्राचीन काल से मकर संक्रांति पर एक अनूठा खेल (A unique game on Makar Sankranti) खेला जाता है। इस खेल की खासियत है कि यह संकेत देता है कि इस बार पूरा साल कैसा होगा? अकाल पड़ेगा या सुकाल। हम बात कर रहे हैं जिले के आवां कस्बे में रियासत काल से ही खेला जा रहा दड़ा महोत्सव (Dada Mahotsav is being played in Awan town since the princely times) की। इस खेल की रौनक लोगों में रोमांच से भर देती है। फटे पुराने कपड़ों से बना हुई 70-80 किलो की बड़ी गेंद (दड़ा) जिसे ग्रामीण जोर आजमाइश कर एक दूसरे की तरफ धकेलते हैं, जो बाद में यह संकेत देता हैं कि साल कैसा रहेगा। रविवार को महोत्सव में दड़ा खेलते-खेलते बीच में अटक गया। जिसका संकेत हैं कि, इस बार साल मध्यम रहेगा, यानी इस बार न तो अकाल पड़ेगा, न सुकाल होगा।

दड़ा ने संकेत दिया कैसा रहेगा यह साल
मकर सक्रांति के मौके पर खेले जाने वाला यह अनोखा खेल (unique game)आने वाला साल कैसा होगा? इसका संकेत देता हैं। इससे पता चला हैं कि आगामी वर्ष में अकाल पड़ेगा या सुकाल। इस खेल के अनुसार, अगर खेल खेल में दड़ा दूनी दरवाजा की तरफ चला जाए तो, यह साल सुख समृद्धि वाला होगा। इसके विपरीत अगर दड़ा अखनियां दरवाजा की तरफ चला जाए तो, संकेत होता है कि साल अच्छा नहीं होगा। उस साल वर्षा का अभाव होने के कारण अकाल होने जैसी स्थिति पैदा होगी। वहीं रविवार को ग्रामीणों की करीब 3 घंटे की मशक्कत के बाद दड़ा खेलते खेलते बीच में ही अटक गया। इसका मतलब है कि इस बार साल मध्यम रहेगा, यानी इस बार न तो अकाल पड़ेगा, न सुकाल होगा।

करीब 70-80 किलो वजनी गेंद से खेला गया अनोखा दंगल
आंवा में खेले जाने वाला दड़ा महोत्सव (Dada Festival) काफी प्रसिद्ध है। इस खेल को खेलने के लिए बारह पुरा गांव के ग्रामीण हिस्सा लेते हैं, जो दो भागों में बंटकर पुराने कपड़ों, रस्सियों से बनी हुई करीब 70-80 किलो वजनी गेंद को एक दूसरे के पाले में पैरों से फुटबॉल की भांति धकेलने का प्रयास करते हैं। इस खेल में 6-6 गांव के लोग बंट जाते हैं। इसके बाद दोनों दलों में इस भारी-भरकम गेंद को पैरों से धकेलने के लिए जोरदार आजमाइश होती है। इस गेंद को पूरे साल पानी के स्थान में रखा जाता हैं। इस दौरान मकर सक्रांति से कुछ दिन पहले ही इसे बाहर निकाल कर पुराने कपड़े आदि से सिलाई कर खेलने के तैयार किया जाता हैं। रविवार को विधिवत पूजा अर्चना के बाद यह खेल शुरू हुआ।

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कपड़े फट जाते हैं, थक जाते हैं फिर भी जोश नहीं होता कम
करीब 70-80 किलो वजनी कपड़े की गेंद को पैरों से धकेलने में ग्रामीणों को काफी मशक्कत करनी पड़ी। इस प्रयास में ग्रामीणों के बीच काफी जोर आजमाइश भी हुई। इस दौरान ग्रामीणों के कपड़े तार तार होकर फट गए। लेकिन उसके बाद भी ग्रामीणों का जोश कम नहीं हुआ। वे दोगुने जोश से गेंद को पैरों से धकेलने के लिए उस पर पिल पड़े। इस अनोखे खेल को देखने के लिए दूर-दूर से लोग काफी संख्या में यहां आए। वहीं गांव की महिलाएं भी छतों पर इकट्ठा होकर नीचे दंगल में खेल रहे ग्रामीणों को ताना देखकर उत्साहित करती हुई नजर आई।

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