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Success Story Garima Agrawal: हिंदी मीडियम से गरिमा ने ऐसे तय किया IPS से IAS तक का सफर

uccess Story Garima Agrawal: This is how Garima traveled from Hindi medium to IPS to IAS.

Success Story Garima Agrawal: यूपीएससी (UPSC) सबसे कठिन परीक्षा मानी जाती है जिसमें लोग एक बार सफलता को तरसते हैं, वहीं कुछ कैंडिडेट्स ऐसे होते हैं जिन्हें किस्मत और उनकी कड़ी मेहनत बार-बार इस मुकाम तक पहुंचा देती है। आज हम बात करेंगे मध्य प्रदेश की एक छोटी सी जगह खरगोन की रहने वाली गरिमा अग्रवाल (IAS Garima Agarwal) की। गरिमा का बैकग्राउंड देखें तो सामने आएगा कि उन्होंने अपनी स्टूडेंट लाइफ में बहुत कुछ हासिल किया और वे हमेशा से एक ब्रिलिएंट स्टूडेंट (Brilliant student) रहीं। लेकिन श्रेष्ठ तक पहुंचने का यह सफर इतना आसान नहीं होता न ही इतनी आसानी से यह सफलता मिलती है। हर किसी के जीवन में अपने-अपने संघर्ष होते हैं, गरिमा के भी थे। लेकिन सब संघर्षों से पार पाकर उन्होंने यह सफलता हासिल की, आज जानते हैं गरिमा के गौरव पुर्ण इस सफर के बारे में।

हिंदी मीडियम से गरिमा ने ली शिक्षा
गरिमा उन कैंडिडेट्स के लिए भी बड़ी प्रेरणा सोत्र हैं जिन्हें लगता है कि हिंदी मीडियम से की गयी स्टडी उनके करियर में आगे अवरोध बन सकती है। गरिमा की पूरी स्कूलिंग उनके टाउन में स्टेट बोर्ड से हुयी पर गरिमा अपने जीवन में सफलता दर सफलता हासिल करती गयीं। उनके दसवीं में 92 परसेंट और बारहवीं में 89 परसेंट मार्क्स आये। यही नहीं अपने एक्सीलेंट बोर्ड रिजल्ट की वजह से उन्हें रोटरी इंटरनेशनल यूथ एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत एक साल की हायर सेकेंडरी एजुकेशन मिनेसोटा, अमेरिका में पूरी करने को मिली।

गरिमा की मां किरण अग्रवाल होममेकर हैं और पिता कल्याण अग्रवाल बिजनेस मैन और समाज सेवी हैं। गरिमा की बड़ी बहन प्रीती अग्रवाल भी साल 2013 में यूपीएससी परीक्षा (UPSC Exam) पास करके इंडियन पोस्टल सर्विस में कार्यरत हैं। उनके पति शेखर गिरिडीह भी आईआरएस ऑफिसर (IRS officerहैं। एक ऐसी फैमिली से संबंध रखना अपने आप में गर्व की बात है पर इससे आपका संघर्ष कम नहीं हो जाता। एक साक्षात्कार में गरिमा कहती हैं, कि आपके परिवार के लोग इसी सेवा में होते हैं इस बात का फायदा मिलता है पर पढ़ना आपको ही पड़ता है, मेहनत आप ही करते हैं और हर तरह का संघर्ष आपका ही होता है। इससे नहीं बचा जा सकता और अपना सौ प्रतिशत तो देना ही होता है।

पहले ही प्रयास में बनीं आईपीएस
स्कूल के बाद गरिमा ने जेईई दिया और सेलेक्ट हो गयीं, इसके बाद उन्होंने आईआईटी हैदराबाद से ग्रेजुएशन किया और जर्मनी से इंटर्नशिप। यहीं उन्हें नौकरी का ऑफर भी मिला पर हमेशा से समाज सेवा करने की चाहत रखने वाली गरिमा ने इस नौकरी को न कह दिया। गरिमा ने करीब डेढ़ साल परीक्षा की तैयारी करके साल 2017 में पहली बार यूपीएससी परीक्षा दी और पहली ही बार में सेलेक्ट हो गयीं। गरिमा की 241वीं रैंक थी और उन्हें आईपीएस सर्विस (IPS service) मिली। गरिमा अपनी सफलता से संतुष्ट थीं पर उन्हें आईएएस ज्यादा लुभावना क्षेत्र लगता था।

इधर गरिमा ने आईपीएस की ट्रेनिंग ज्वॉइन कर ली और चूंकि वे पहले ही यूपीएससी के लिए तैयारी कर चुकी थीं इसलिए उन्होंने साथ ही में एक बार फिर से तैयारी जारी रखते हुए दोबारा परीक्षा देने का मन बनाया। गरिमा की मेहनत और समर्पण की दाद देनी होगी कि ट्रेनिंग के साथ भी उन्होंने अगले ही साल यानी साल 2018 में न केवल यूपीएससी परीक्षा पास की बल्कि 40वीं रैंक लाकर टॉप भी किया (Passed UPSC exam but also topped by getting 40th rank)। इसी के साथ उनका बचपन का सपना साकार हो गया।

सोशल मीडिया से बनाई दूरी
गरिमा की यह सफलता तो सभी को दिखती है पर इसके पीछे का संघर्ष और दिन-रात की मेहनत कम ही लोग जानते हैं। हिंदी मीडियम की गरिमा के लिए इंग्लिश में परीक्षा लिखना और न्यूज़ पेपर पढ़ना आसान नहीं था, शुरू में उन्हें केवल पेपर पढ़ने में ही तीन घंटे लग जाते थे, हिंदी मीडियम के बावजूद उन्होंने इंग्लिश में परीक्षा देना चुना क्योंकि हिंदी में स्टडी मैटीरियल जैसा वे चाह रही थीं नहीं मिल रहा था। इंजीनियरिंग में उन्हें भाषा की बहुत समस्या नहीं आयी क्योंकि अधिकतर कैलकुलेशंस ही रहते थे या कोडिंग, यूपीएससी मेन्स में इफेक्टिव आसंर लिखना सबसे बड़ा चेलेंज था (Writing effective essay was the biggest challenge in UPSC Mains), जिसे पार पाने के लिए उन्होंने खूब आंसर राइटिंग प्रैक्टिस करी। गरिमा कहती हैं, एक या डेढ़ साल की डेडिकेटेड तैयारी आपको सफलता दिला सकती है, बस इस एक या दो साल में कुछ और न करें केवल और केवल यूपीएससी पास करने पर ध्यान केंद्रित करें, न किसी और सरकारी परीक्षा की तैयारी करें न ही कोई और पेपर दें।

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गरिमा कहती हैं तैयारी के समय डिस्ट्रैक्शंस से बचने के लिए उन्होंने दो साल तक सोशल मीडिया के सभी एकाउंट डिलीट कर दिए थे, इस सफर में गरिमा अपने माता-पिता का योगदान भी कम नहीं आंकती जिन्होंने परिवार और समाज की बातें न सुनते हुए केवल अपने बच्चों पर विश्वास दिखाया और उनके बच्चों ने भी उनका मान रखा।

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