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सुप्रीम कोर्ट ने माना 370 को हटाने का फैसला क़ानूनी था, इससे घाटी को हुआ फायदा, अपने ब्लॉग मे कही पीएम मोदी ने यह बात

Supreme Court accepted the decision to remove Article 370 was legal, the valley benefited from it, PM Modi said this in his blog

पीएम मोदी ने अपने लेख मे कहा है कि जम्मू-कश्मीर के लोग विकास चाहते है। वह अपनी ताकत और कौशल के आधार पर भारत के विकास मे योगदान देना चाहते है। वह अपने बच्चो के प्रति जीवन की गुणवत्ता चाहते है। एक जीवन जो हिंसा और अनिश्चितता से मुक्त हो चूकि है। 11 दिसंबर को अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के खिलाफ दाखिल याचिकाओ पर इसे सही फैसला बताया है। कोर्ट ने अपने फैसले मे कहा कि यह संवैधानिक फैसला था। कोर्ट ने कहा अनुच्छेद 370 अस्थाई था और सरकार ने इसे हटाकर कुछ गलत नही किया। इसके साथ कोर्ट ने कहा जम्मू-कश्मीर जब भारत मे विलय हुआ था। तभी उसने अपनी संप्रभुता खो दी थी। भारत के संविधान को स्वीकार कर लिया था। उसके बाद उसके अलग होने का सवाल खड़ा नही होता है। अब कोर्ट के फैसले के बाद ही पीएम मोदी ने एक लेख लिखा है।

पीएम मोदी ने अपने लेख मे विषय को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले तथा इसी दौरान की गई टिप्पणियो को लेकर कई बाते बयान कि है। पीएम मोदी ने अपने लेख मे लिखा कि भारत के माननीय सर्वाेच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 370 और 35 (ए) को निरस्त करने पर 11 दिसंबर को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। माननीय सर्वाेच्च न्यायालय ने फैसले मे भारत की संप्रभुता और अखंडता को बरकरार रखा है। जिसे प्रत्येक भारतीय द्वारा सदैव संजोया जाता रहा। सुप्रीम कोर्ट का कहना पूरी तरह से उचित कि 5 अगस्त 2019 को हुआ निर्णय संवैधानिक एकीकरण को बढ़ाने के उद्देश्य से लिया गया था ना कि इसका उद्देश्य विघटन था। सर्वाेच्च न्यायालय ने तथ्य को भलीभांति माना कि अनुच्छेद 370 का स्वरूप स्थायी नही था।

पीएम मोदी ने लेख मे आगे लिखा जम्मू, कश्मीर के साथ लद्दाख की खूबसूरत और शांत वादियां, बर्फ से ढके पहाड़, पीढ़ियो से कवियो, कलाकारो तथा हर भारतीय के दिल को मंत्रमुग्ध करते आये है। यह ऐसा अद्भुत क्षेत्र जो हर दृष्टि से अभूतपूर्व है। जहा हिमालय आकाश को स्पर्श करता हुआ नजर आता है। जहा इसकी झीलो एवं नदियो का निर्मल जल स्वर्ग का दर्पण प्रतीत होता है। पर पिछले कई दशको से जम्मू-कश्मीर के अनेक स्थानो पर ऐसी हिंसा और अस्थिरता देखी गई है। जिसकी कल्पना तक नही की जा सकती है। वहा के हालात कुछ ऐसे थे कि जिससे जम्मू-कश्मीर के परिश्रमी, प्रकृति प्रेमी और स्नेह से भरे लोगो को कभी रूबरू नही होना चाहिए था।

पीएम ने लिखा दुर्भाग्यवश, सदियो तक उपनिवेश बने रहने, विशेषकर आर्थिक और मानसिक रूप से पराधीन रहने के कारण, तब का समाज एक प्रकार से भ्रमित हो गया है। अत्यंत बुनियादी विषयों पर स्पष्ट नजरिया अपनाने के बजाय दुविधा की स्थिति बनी रहने से ज्यादा भ्रम उत्पन्न हुआ है। अफसोस की बात है जम्मू-कश्मीर को इस तरह की मानसिकता से व्यापक नुकसान हुआ है। देश की आजादी के समय तब राजनीतिक नेतृत्व के पास राष्ट्रीय एकता के लिए नई शुरुआत करने का विकल्प था। पर तब इसके बजाय उसी भ्रमित समाज का दृष्टिकोण जारी रखने का निर्णय लिया गया है। भले इस कार दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितो की अनदेखी करनी पड़ी है। मुझे अपने जीवन के शुरुआती दौर से जम्मू-कश्मीर आंदोलन से जुड़े रहने का अवसर मिला है। मेरी अवधारणा सदैव ऐसी रही कि जिसके अनुसार जम्मू-कश्मीर महज एक राजनीतिक मुद्दा नही था बल्कि यह विषय समाज की आकांक्षाओं को पूरा करने के बारे मे था। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नेहरू मंत्रिमंडल मे एक महत्वपूर्ण विभाग मिला हुआ था।

वह काफी लंबे समय तक सरकार मे बने रह सकते थे। उन्होंने फिर भी कश्मीर मुद्दे पर मंत्रिमंडल छोडकर आगे का कठिन रास्ता चुना। भले इसकी कीमत उन्हे अपनी जान देकर चुकानी पड़ी थी। पर उनके कथन प्रयासो और बलिदान से करोड़ो भारतीय कश्मीर के मुद्दे से भावनात्मक रूप से जुड़ गए है। कई वर्षों बाद अटल जी ने श्रीनगर मे सार्वजनिक बैठक मे ‘इंसानियत’, ‘जम्हूरियत’ और ‘कश्मीरियत’ का प्रभावशाली संदेश दिया था जो कि सदैव प्रेरणा का महान स्रोत रहा है।

मेरा हमेशा से दृढ़ विश्वास रहा कि जम्मू-कश्मीर मे जो कुछ भी हुआ था वह हमारे राष्ट्र और वहा के लोगो के साथ एक बड़ा विश्वासघात था। मेरी यह प्रबल इच्छा थी कि मै इस कलंक को, लोगो पर हुए अन्याय को मिटाने के लिए कुछ भी कर सकता हूँ, उसे जरूर करूँ। मे हमेशा से जम्मू-कश्मीर के लोगो की पीड़ा को कम करने के लिए काम करना चाहता था। सरल शब्द मे कहे तो, अनुच्छेद 370 और 35 (ए) जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के सामने बड़ी बाधाओं की तरह थे। यह अनुच्छेद अटूट दीवार की तरह थे। गरीब,वंचित, दलितों-पिछड़ों-महिलाओ के लिए पीड़ा मे थे। अनुच्छेद 370 और 35(ए) की वजह से जम्मू-कश्मीर के लोगो को अधिकार और विकास कभी नही मिल पाया है।

जो उनके साथी देशवासियो को मिला है। इन अनुच्छेदो के कारण, एक राष्ट्र के लोगो के बीच दूरियां पैदा हो गईं है। इस दूरी कि वजह से हमारे देश के कई लोग, जो जम्मू-कश्मीर की समस्याओ को हल करने के लिए काम करना चाहते थे। ऐसा करने मे असमर्थ थे। भले उन लोगो ने वहा के लोगों के दर्द को स्पष्ट रूप से महसूस किया। एक कार्यकर्ता के रूप मे जिसने पिछले कई दशको से मुद्दे को करीब से देखा हो वह इस मुझे मुद्दे की जटिलताओ से भली-भांति परिचित था। मै एक बात से बिल्कुल स्पष्ट था जम्मू-कश्मीर के लोग विकास चाहते है। वह अपनी ताकत और कौशल के आधार पर भारत के विकास मे योगदान देना चाहते है। वह अपने बच्चो के लिए जीवन की बेहतर गुणवत्ता चाहते है।

एक ऐसा जीवन जो हिंसा और अनिश्चितता से मुक्त हो। जम्मू-कश्मीर के लोगो की सेवा करते समय, हमने तीन बातो को प्रमुखता दी है। नागरिको की चिंताओं को समझना, सरकार के कार्यों के माध्यम से आपसी-विश्वास का निर्माण करना और विकास, निरंतर विकास को प्राथमिकता देना है। मुझे याद है कि 2014 मे हमारे सत्ता संभालने के तुरंत बाद ही जम्मू-कश्मीर मे विनाशकारी बाढ़ आई थी। जिससे कश्मीर घाटी मे बहुत नुकसान हुआ। सितंबर 2014 में स्थिति का आकलन करने के लिए श्रीनगर गया। पुनर्वास के लिए विशेष सहायता के रूप मे 1000 करोड़ रुपये की घोषणा भी की है। इससे लोगों मे यह संदेश गया संकट के दौरान हमारी सरकार वहा के लोगों की मदद के लिए कितनी संवेदनशील है। मुझे जम्मू-कश्मीर में विभिन्न क्षेत्रो के लोगो सेे मिलने का अवसर मिला है। इन संवादो मे बात समान समान रूप से उभरती है।

लोग विकास ही नही चाहते बल्कि दशको से व्याप्त भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहते हैं। उस साल मैंने जम्मू-कश्मीर मे जान गंवाने वालो की याद मे दीपावली नही मनाने का फैसला किया था। मैंने दीपावली के दिन जम्मू-कश्मीर मे मौजूद रहने का फैसला किया था। जम्मू एवं कश्मीर की विकास यात्रा को मजबूती प्रदान करने के लिए हमने यह तय किया कि हमारी सरकार के मंत्री बार-बार वहा जाने के साथ वहां के लोगो से सीधे संवाद करेंगे। इन लगातार दौरों ने जम्मू एवं कश्मीर मे सद्भावना कायम करने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मई 2014 से मार्च 2019 के दौरान 150 से अधिक मंत्रिस्तरीय दौरे हुए। यह अपने आप मे कीर्तिमान है। वर्ष 2015 का विशेष पैकेज जम्मू एवं कश्मीर की विकास संबंधी जरूरतो को पूरा करने की दिशा मे महत्वपूर्ण कदम था। इसमे बुनियादी ढांचे के विकास, रोजगार सृजन, पर्यटन को बढ़ावा देने और हस्तशिल्प उद्योग को सहायता प्रदान करने से जुड़ी पहल शामिल थीं। हमने खेलशक्ति मे युवाओं के सपनो को साकार करने की क्षमता को पहचानकर जम्मू एवं कश्मीर मे भरपूर सदुपयोग किया है। विभिन्न खेलों के माध्यम से, हमने वहा के युवाओं की आकांक्षाओं और उनके भविष्य पर खेलों से जुड़ी गतिविधियों के परिवर्तनकारी प्रभाव को देखा।

इस दौरान विभिन्न खेल स्थलों का आधुनिकीकरण किया गया है। प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए। प्रशिक्षक उपलब्ध कराए गए। स्थानीय स्तर पर फुटबॉल क्लबों की स्थापना को प्रोत्साहित किया जाना इन सबमें एक सबसे अनूठी बात रही है। इसके परिणाम शानदार निकले है। मुझे प्रतिभाशाली फुटबॉल खिलाड़ी अफशां आशिक का नाम याद आ रहा है। वह दिसंबर 2014 में श्रीनगर मे पथराव करने वाले एक समूह का हिस्सा थी। पर सही प्रोत्साहन मिलने पर उसने फुटबॉल की ओर रुख किया है। उसे प्रशिक्षण के लिए भेजा गया। उसने खेल मे उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। मुझे ‘फिट इंडिया डायलॉग्स’ के एक कार्यक्रम के दौरान उसके साथ हुई बातचीत याद है। जिसमें मैंने कहा था अब ‘बेंड इट लाइक बेकहम’ से आगे बढ़ने का समय है। क्योंकि अब यह ‘ऐस इट लाइक अफशां’ है। मुझे खुशी है अब तो अन्य युवाओं ने किकबॉक्सिंग, कराटे और अन्य खेलों में अपनी प्रतिभा दिखानी शुरू कर दी है। पंचायत चुनाव क्षेत्र के सर्वांगीण विकास की दिशा मे महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुआ है।

एक बार फिर हमारे सामने या तो सत्ता में बने रहने या अपने सिद्धांतों पर अटल रहने का विकल्प था। हमारे लिए यह विकल्प कभी कठिन नहीं था। हमने सरकार को गंवाने के विकल्प को चुनकर उन आदर्शों को प्राथमिकता दी। जिनके पक्ष मे हम खड़े हैं। जम्मू एवं कश्मीर के लोगों की आकांक्षाएं को सर्वाेच्च प्राथमिकता दी गई है। पंचायत चुनावों की सफलता ने जम्मू एवं कश्मीर के लोगों की लोकतांत्रिक प्रकृति को इंगित किया। मुझे गांवों के प्रधानों के साथ हुई एक बातचीत याद आती है। अन्य मुद्दों के अलावा, मैंने उनसे एक अनुरोध किया किसी भी स्थिति मे स्कूलों को नहीं जलाया जाना चाहिए। स्कूलो की सुरक्षा की जानी चाहिए। मुझे देखकर खुशी हुई इसका पालन किया गया।

अगर स्कूल जलाए जाते तो सबसे ज्यादा नुकसान छोटे बच्चो का होता है। 5 अगस्त का ऐतिहासिक दिन भारतीय के दिल दिमाग मे बसा हुआ। हमारी संसद ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का ऐतिहासिक निर्णय पारित किया। तब से जम्मू, कश्मीर और लद्दाख मे बहुत कुछ बदलाव आया। न्यायिक अदालत का फैसला दिसंबर 2023 में आया है। पर जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में विकास की गति को देखते हुए जनता की अदालत ने चार साल पहले अनुच्छेद 370 और 35 (ए) को निरस्त करने के संसद के फैसले का जोरदार समर्थन किया। राजनीतिक स्तर पर, पिछले 4 वर्षों को जमीनी स्तर पर लोकतंत्र में फिर से भरोसा जताने के रूप में देखा जाना चहिये।

महिलाओं, आदिवासियों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और समाज के वंचित वर्गों को उनका हक नही मिल रहा था। लद्दाख की आकांक्षाओं को पूरी तरह से नजरअंदाज किया जाता था। पर 5 अगस्त 2019 ने सब कुछ बदल दिया है। सभी केंद्रीय कानून अब बिना किसी डर या पक्षपात के लागू होते हैं, प्रतिनिधित्व भी पहले से अधिक व्यापक हो गया। त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली लागू हो गई है। बीडीसी चुनाव हुए और शरणार्थी समुदाय, जिन्हें लगभग भुला दिया गया था। उन्हें विकास का लाभ मिलना शुरू हो गया है।केंद्र सरकार की प्रमुख योजनाओं ने शत-प्रतिशत लक्ष्य हासिल किया है। ऐसी योजनाओं में समाज के सभी वर्गों को शामिल किया गया। इनमें सौभाग्य और उज्ज्वला योजनाएं शामिल हैं।

आवास, नल से जल कनेक्शन और वित्तीय समावेशन में प्रगति हुई। लोगों के लिए बड़ी चुनौती रही स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में भी बुनियादी ढांचे का विकास किया गया। सभी गांवों ने खुले में शौच से मुक्त-ओडीएफ प्लस का दर्जा प्राप्त कर लिया है। सरकारी रिक्तियां, जो कभी भ्रष्टाचार और पक्षपात का शिकार होती थी। पारदर्शी और सही प्रक्रिया के तहत भरी गई। आईएमआर जैसे अन्य संकेतकों में सुधार दिखा है। बुनियादी ढांचे और पर्यटन में बढ़ावा सभी देख सकते हैं। इसका श्रेय स्वाभाविक रूप से जम्मू-कश्मीर के लोगों की दृढ़ता को जाता है।

जिन्होंने बार-बार दिखाया है कि वे केवल विकास चाहते है। इस सकारात्मक बदलाव के वाहक बनने के इच्छुक हैं। इससे पहले जम्मू, कश्मीर और लद्दाख की स्थिति पर सवालिया निशान लगा हुआ था। रिकॉर्ड वृद्धि, रिकॉर्ड विकास, पर्यटकों के रिकॉर्ड आगमन के बारे मे सुनकर लोगो को सुखद आश्चर्य होता है। सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर के अपने फैसले में श्एक भारत, श्रेष्ठ भारतश् की भावना को मजबूत किया है।

इसने हमें याद दिलाया एकता और सुशासन के लिए साझा प्रतिबद्धता हमारी पहचान है। आज जम्मू, कश्मीर और लद्दाख मे जन्म लेने वाले प्रत्येक बच्चे को साफ-सुथरा माहौल मिलता है। जिसमें वह जीवंत आकांक्षाओं से भरे अपने भविष्य को साकार कर सकता है। आज लोगों के सपने बीते समय के मोहताज नहीं, बल्कि भविष्य की संभावनाएं हैं। जम्मू और, कश्मीर में मोहभंग, निराशा और हताशा की जगह अब विकास, लोकतंत्र और गरिमा ने ले ली है।

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