जयपुर। राजस्थान के 23 शहरों में हुए FSTP (फीकल स्लज ट्रीटमेंट प्लांट) घोटाले की गहराई से जांच होने पर तत्कालीन स्वायत्त शासन एवं नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल और उनके करीबी अफसरों की मुसीबतें बढ़ सकती हैं। आरोप है कि धारीवाल ने एक कांग्रेसी नेता की कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए तकनीकी और वित्तीय निविदाएं खुलने के बाद भी टेंडर को रद्द करवाया, जिससे टेंडर की लागत दोगुनी से ज्यादा बढ़ा दी गई। अब वर्तमान नगरीय विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं, जिससे विभाग में हलचल मची हुई है।
कैसे बढ़ी टेंडर की लागत?
आरोप है कि FSTP घोटाले में धारीवाल ने एक कंपनी को उपकृत करने के लिए 40 दिन तक फाइल को रोके रखा। इसके बाद, तकनीक बदलने के नाम पर टेंडर की लागत को दोगुना कर दिया गया, जबकि तकनीक में कोई विशेष बदलाव नहीं किया गया था। इस मामले में पेनल्टी लगाने की बजाय, ठेकेदार को बार-बार समय बढ़ाकर 100 करोड़ रुपये का भुगतान करने की कोशिश की गई।

जांच के आदेश से बढ़ा दबाव
मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने इस मामले की गहनता से जांच के लिए एक तीन सदस्यीय कमेटी का गठन (Formation of a three-member committee to investigate) किया है, जिसमें आरयूआईडीपी के परियोजना निदेशक डी के मीणा, अधीक्षण अभियंता एस. एस. खिरिया, और वरिष्ठ लेखाधिकारी एल. एन. शर्मा शामिल हैं। कमेटी को अगले पखवाड़े में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपने का आदेश दिया गया है।
प्रोजेक्ट की स्वीकृति और जांच के आदेश
इस घोटाले में एक रोचक मोड़ तब आया जब यह बात सामने आई कि जिस अधिकारी ने इस प्रोजेक्ट की प्रशासनिक और वित्तीय स्वीकृति दी थी, उसी ने जांच के आदेश भी जारी किए हैं। अगस्त 2021 में, आरयूआईडीपी के तत्कालीन प्रोजेक्ट डायरेक्टर आईएएस कुमार पाल गौतम ने इस प्रोजेक्ट की स्वीकृति दी थी। हालांकि, धारीवाल के आदेश के बाद पुराना टेंडर रद्द करके नया टेंडर निकाला गया, लेकिन गौतम ने फाइल पर यह लिखते हुए खुद को विवाद से दूर कर लिया कि वह उस मीटिंग में मौजूद नहीं थे। अब वही आईएएस कुमार पाल गौतम 5 अक्टूबर, 2024 को जारी जांच के आदेश पर हस्ताक्षर कर रहे हैं।
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तत्कालीन निदेशक ने किया था अनुबंध पर हस्ताक्षर
पूर्व निदेशक हृदेश कुमार शर्मा ने इस प्रोजेक्ट के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे। इसके बाद फरवरी 2022 में तकनीकी और वित्तीय निविदाएं खुली थीं, लेकिन जून 2022 में इसे रद्द कर दिया गया और काम को आरयूआईडीपी से स्वायत्त शासन निदेशालय को सौंप दिया गया। इसका उद्देश्य धारीवाल के आदेशों के अनुसार काम करना बताया जा रहा है।