टोंक। राजस्थान के टोंक जिले के पीपलू उपखंड में एक किसान परिवार ने सामूहिक आत्महत्या की अनुमति (Permission for mass suicide) मांगकर प्रशासन को सकते में डाल दिया है। यह मामला पीपलू पंचायत समिति (Piplu Panchayat Samiti) से जुड़ा है, जहां पीड़ित परिवार ने जमीन विवाद को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं। परिवार का कहना है कि उनके जीवन यापन का एकमात्र साधन उनकी पुश्तैनी जमीन है, जिसे राजनीतिक प्रभाव और फर्जीवाड़े से हड़पने की कोशिश की जा रही है।
क्या है मामला?
पीड़ित किसान शंकर बैरवा ने बताया कि उनकी पुश्तैनी जमीन ग्राम पीपलू में स्थित है, जिस पर उनका परिवार वर्षों से खेती कर रहा है। यह जमीन उनके पूर्वज देवा बैरवा की खातेदारी में थी, जिनके चार बेटे- जगन्नाथ, काना, रामचंद्रा, और भंवर-संयुक्त परिवार में रहते थे।
समय के साथ देवा बैरवा और उनके बेटों का निधन हो गया, और उनके वारिस अलग-अलग हो गए। हालांकि, इस संयुक्त जमीन की खातेदारी परिवार के सबसे बड़े बेटे जगन्नाथ और उनके वारिसों के नाम दर्ज रही। अब आरोप है कि जगन्नाथ के वारिस अपने भाइयों के हिस्से की जमीन हड़पने की साजिश रच रहे हैं।
राजनीतिक प्रभाव और जमीन हड़पने के आरोप
परिवार ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि जगन्नाथ के वारिसों ने राजनीतिक प्रभाव का सहारा लिया है। उन्होंने पूर्व सरपंच और पंचायत समिति सदस्य सत्यनारायण चंदेल को इस जमीन के हिस्से बेचने की कोशिश की है।
परिजनों ने यह भी आरोप लगाया कि सत्यनारायण चंदेल ने कोर्ट के स्थगन आदेश को आर.ए.ए. कोर्ट, टोंक में राजनीतिक सांठगांठ (political collusion) से खारिज करवा दिया। इससे परिवार की स्थिति और गंभीर हो गई है, क्योंकि यह जमीन उनकी आय का एकमात्र स्रोत है।
जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपा
शंकर बैरवा परिवार ने टोंक जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर मांग की है कि इस जमीन की रजिस्ट्री को रोका जाए। उनका कहना है कि यदि उनकी जमीन छिन जाती है, तो उनके पास जीवन यापन का कोई साधन नहीं रहेगा, और उन्हें सामूहिक आत्महत्या करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा।
प्रशासनिक अधिकारियों में हड़कंप
परिवार के सामूहिक आत्महत्या की अनुमति मांगने के बाद प्रशासनिक हलकों में हड़कंप मच गया है। तहसीलदार और अन्य अधिकारी मामले की जांच में जुट गए हैं।
क्या कहता है जिला प्रशासन?
मामले पर प्रशासन का कहना है कि परिवार द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच शुरू कर दी गई है। जिला प्रशासन का कहना है कि किसी भी स्थिति में पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने की पूरी कोशिश की जाएगी।
गहराता विवाद
यह मामला न केवल जमीन विवाद का है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायती राजनीति और प्रभावशाली व्यक्तियों के हस्तक्षेप को भी उजागर करता है। यह सवाल उठता है कि क्या गरीब किसानों को न्याय मिल पाएगा, या यह मामला भी राजनीतिक दबाव की भेंट चढ़ जाएगा?
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न्याय की उम्मीद में किसान परिवार
फिलहाल, परिवार ने प्रशासन से न्याय की गुहार लगाई (Appealed for justice from the administration) है और सामूहिक आत्महत्या की अनुमति मांगकर अपनी बेबसी जाहिर की है। अब यह देखना होगा कि प्रशासन इस मामले को कैसे सुलझाता है और पीड़ित परिवार को राहत कैसे दिलाई जाती है।