जयपुर में दवा सुरक्षा को लेकर एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है। हाल ही में दवा विभाग द्वारा की गई सैंपलिंग (Sampling done by pharmaceutical department) में पैरासीटामोल, इंसुलिन इंजेक्शन, और रेबीप्राजोल (Paracetamol, insulin injection, and rabeprazole) जैसी आम तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली कई दवाओं के सैंपल तय मानकों पर खरे नहीं उतरे (Medicine samples did not meet the prescribed standards)। इन दवाओं में घटकों की कमी पाई गई, जिससे मरीजों की सेहत पर गंभीर खतरा हो सकता है। दवा विभाग ने इन दवाओं के बैचों की बिक्री पर तुरंत रोक लगा दी है।
हिमाचल और उत्तराखंड में बनी दवाओं पर सवाल
यह बात और भी गंभीर हो जाती है जब यह पता चलता है कि अधिकांश फेल हुई दवाइयां हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में निर्मित (Failed medicines manufactured in Himachal Pradesh and Uttarakhand) हैं। यह कोई पहली बार नहीं है जब इन राज्यों से आने वाली दवाओं में घटकों की कमी या खराब गुणवत्ता पाई गई हो। इससे पहले भी कई बार इन राज्यों की दवाइयों के सैंपल फेल हो चुके हैं, जिससे दवा निर्माण इकाइयों पर सवाल उठ रहे हैं।
फेल हुई प्रमुख दवाइयों की जानकारी
रेबीप्राजोल व सस्टेन रिलीज डोमपेरिडोन कैप्सूल
Rabeprazole and Sustained Release Domperidone Capsules- यह दवा पाचन से जुड़ी समस्याओं और न्यूरो डिसऑर्डर के इलाज में उपयोगी मानी जाती है। उत्तराखंड में बनी इस दवा में रेबीप्राजोल की मात्रा बेहद कम पाई गई, जिससे इसकी प्रभावशीलता पर असर पड़ सकता है।
बीटामेथासोन
Betamethasone- सूजन कम करने के लिए इस्तेमाल होने वाली इस दवा में हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में निर्मित बैच में सक्रिय घटक की मात्रा निर्धारित स्तर से काफी कम मिली।
निमुस्लाइड और पैरासीटामोल
Nimuslide and paracetamol- बुखार और दर्द के इलाज में आमतौर पर दी जाने वाली इस दवा के घटक पुराने और अप्रभावी पाए गए। इससे मरीजों को राहत मिलने की बजाय दवा के साइड इफेक्ट्स का खतरा बढ़ सकता है।
हीपेरिन सोडियम इंजेक्शन
Heparin sodium injection- थक्का बनने से रोकने के लिए दी जाने वाली यह दवा गंभीर मरीजों के लिए अहम मानी जाती है। हिमाचल प्रदेश के सोलन में बने इस इंजेक्शन में घटक सही अनुपात में नहीं मिले, जिससे इसकी गुणवत्ता पर सवाल खड़ा हो गया।
इंसुलिन इंजेक्शन
insulin injection- मधुमेह रोगियों के लिए बेहद जरूरी इंसुलिन इंजेक्शन अहमदाबाद से आने वाले एक बैच में फेल हो गया। इस इंजेक्शन में जिंक की मात्रा निर्धारित मानकों से कम पाई गई, जिससे मरीजों के ब्लड शुगर स्तर को नियंत्रित करने में परेशानी हो सकती है।
सख्त कार्रवाई की तैयारी में दवा विभाग
ड्रग कंट्रोलर अजय फाटक (Drug Controller Ajay Phatak) ने बताया कि जिन बैचों के सैंपल फेल हुए हैं, उनकी बिक्री पर रोक (Ban on sales) लगा दी गई है। विभाग अब उन कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की तैयारी में है, जिनकी दवाइयां लगातार गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं उतर रही हैं।
बढ़ाई जाएगी सैंपलिंग संख्या
विशेषज्ञों का कहना है कि दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सैंपलिंग की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए, खासकर उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश से आने वाली दवाओं की। इसके साथ ही बार-बार फेल होने वाली कंपनियों को ब्लैकलिस्ट (Blacklist Companies) करना बेहद जरूरी है।
मरीजों की सुरक्षा पर खतरा
इस घटना ने दवा सुरक्षा को लेकर एक गंभीर बहस छेड़ दी है। मरीजों की सेहत से खिलवाड़ (Playing with the health of patients) करने वाली इन दवा कंपनियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग उठ रही है। दवा विशेषज्ञों का कहना है कि घटिया दवाओं के इस्तेमाल से मरीजों को ठीक होने में देरी हो सकती है, साथ ही गंभीर साइड इफेक्ट्स का खतरा भी बढ़ जाता है।
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नकली और घटिया दवाओं से बचाव कैसे करें?
मरीजों को चाहिए कि वे दवाएं खरीदते समय ब्रांड और निर्माता की पूरी जानकारी लें। डॉक्टर द्वारा बताई गई विश्वसनीय कंपनियों की दवाइयों का ही उपयोग करें। यदि किसी दवा के सेवन से अपेक्षित लाभ नहीं मिल रहा हो या साइड इफेक्ट्स नजर आएं तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।