जयपुर। राजस्थान में स्क्रब टाइफस (Scrub typhus in rajasthan) बीमारी के मामलों ने इस साल नए रिकॉर्ड बना दिए हैं, जिससे यह स्पष्ट है कि यह बीमारी राज्य के स्वास्थ्य विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। साल 2024 में 3,000 से अधिक मामले (More than 3,000 cases in the year 2024) सामने आए हैं, जो पिछले 12 वर्षों में सबसे अधिक हैं। यह बीमारी, जो माइट या पिस्सू के काटने से फैलती है (This disease, which is spread by the bite of a mite or flea), राज्य के 30 से अधिक जिलों में तेजी से अपने पांव पसार रही है। चिकित्सा विभाग इस पर काबू पाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है, लेकिन मरीजों की बढ़ती संख्या ने विभाग की चिंताओं को बढ़ा दिया है।
पब्लिक डायरेक्टर हेल्थ, डॉ. रवि प्रकाश माथुर ने बताया कि चिकित्सा विभाग मौसमी बीमारियों की रोकथाम के लिए लगातार काम कर रहा है। हाल ही में एक रिव्यू बैठक में मौसमी बीमारियों पर नियंत्रण पाने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। हालांकि, बढ़ते मामलों ने इस बीमारी की रोकथाम की प्रक्रिया को और अधिक चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
जयपुर और उदयपुर में सबसे अधिक मामले
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार, जयपुर और उदयपुर स्क्रब टाइफस के सबसे अधिक प्रभावित जिलों में शामिल हैं। इन दोनों जिलों में बड़ी संख्या में पॉजिटिव मामले दर्ज (Positive cases registered) किए गए हैं। इसके अतिरिक्त, अलवर, कोटा, राजसमंद, झालावाड़, दौसा, और भरतपुर जैसे जिले भी इस बीमारी से गंभीर रूप से प्रभावित हैं। मरीजों की संख्या में वृद्धि ने इन क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं पर अतिरिक्त दबाव डाला है।
मौतों के बढ़ते आंकड़े
स्क्रब टाइफस से मौत के मामलों में भी बढ़ोतरी हो रही है। अब तक राज्य में इस बीमारी से 10 लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें से छह मौतें राजधानी जयपुर में हुई हैं। इसके अलावा, अलवर में दो, जबकि भरतपुर और सवाई माधोपुर में एक-एक मौत दर्ज की गई है। यह स्थिति चिंताजनक है, खासकर तब, जब स्वास्थ्य विभाग मौसमी बीमारियों की रोकथाम के लिए सक्रिय है।
डेंगू जैसी बीमारी, लेकिन अलग प्रभाव
चिकित्सकों का कहना है कि स्क्रब टाइफस एक बैक्टीरियल बीमारी है, जिसे सुसुगेमोसी बैक्टीरिया फैलाता है। यह बीमारी पिस्सू के काटने के बाद शरीर में प्रवेश करती है। इसके लक्षणों में सिरदर्द, तेज बुखार, निमोनिया, प्लेटलेट्स में गिरावट, और शरीर पर काले निशान शामिल हैं। डेंगू की तरह, इस बीमारी में भी प्लेटलेट्स गिरते हैं, लेकिन इसके गंभीर मामलों में आर्गन फेल्योर और मौत की संभावना रहती है। पिस्सू के काटने के लगभग 10 दिन बाद इसके लक्षण दिखाई देते हैं, जिससे इसका निदान समय पर करना मुश्किल हो सकता है।
स्क्रब टाइफस के तेजी से बढ़ते मामले
बीते वर्षों में स्क्रब टाइफस के मामलों में लगातार वृद्धि हुई है। 2024 में दर्ज किए गए 3,454 मामलों ने इसे पिछले एक दशक में सबसे खतरनाक स्तर पर पहुंचा दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए विशेष सावधानी और जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है। ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में माइट या पिस्सू का प्रभाव अधिक होने के कारण वहां के निवासी सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं।
स्वास्थ्य विभाग के कदम और चुनौतियां
चिकित्सा विभाग ने स्क्रब टाइफस की रोकथाम के लिए कई योजनाएं बनाई हैं। इसमें साफ-सफाई पर जोर देना, संभावित संक्रमित इलाकों में कीटनाशकों का छिड़काव करना, और जनता को जागरूक करना शामिल है। लेकिन यह बीमारी इतनी तेजी से फैल रही है कि इन प्रयासों के बावजूद इसे नियंत्रित करना मुश्किल हो रहा है।
यह भी पढ़े: नए साल पर कोटा-बूंदी के लिए ओम बिरला का विजन: एयरपोर्ट, पर्यटन, शिक्षा और रोजगार पर जोर
जनता को सतर्क रहने की अपील
डॉक्टरों और विशेषज्ञों ने जनता से सतर्क रहने की अपील की है। पिस्सू के काटने से बचने के लिए स्वच्छता बनाए रखना और घने इलाकों में जाने से बचना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, बीमारी के शुरुआती लक्षणों को पहचानकर तुरंत चिकित्सा सहायता लेना भी जरूरी है।