जयपुर। राजस्थान में विधायक चुने जाने से पहले मंत्री पद की शपथ लेने वाले सुरेंद्र पाल सिंह टीटी (Surendra Pal Singh TT, who took oath as minister before being elected MLA) को श्रीकरणपुर विधानसभा सीट से चुनाव हारने के बाद इस्तीफा देना पड़ा (Had to resign after losing the election from Srikaranpur assembly seat)। राज्यपाल कलराज मिश्र ने मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा द्वारा अग्रेषित राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) सुरेंद्र पाल सिंह टीटी के त्यागपत्र को तत्काल प्रभाव से स्वीकार कर लिया। दरअसल भाजपा ने उपचुनाव जीतने के लिए टीटी को मंत्री बनाकर दांव खेला था जो पूरी तरह से फैल हो गया।
राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन कर भाजपा ने मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल में नया प्रयोग किया था (A new experiment was done in the cabinet), प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के स्तर पर इन फैसले को चौंकाने वाला माना जा रहा था। उपचुनाव का परिणाम आने के बाद भाजपा के नेतृत्व को बड़ा झटका लगा है। इसको मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की अग्निपरीक्षा के रूप में देखा जा रहा था, जिसमें उनको करारी शिकस्त हाथ लगी।
भाजपा ने सुरेंद्रपाल सिंह टीटी (Surendrapal Singh TT) को मतदान से पहले ही स्वतंत्र प्रभार वाले कृषि विपणन राज्यमंत्री बना दिया था। कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों ने भाजपा के इस निर्णय को आचार संहिता का उल्लंघन बताया था।भाजपा को राजस्थान में सरकार बनाए अभी एक महीना भी नहीं हुआ है। टीटी को जिताना प्रतिष्ठा का सवाल इसलिए रहा क्योंकि पहली बार भाजपा ने किसी प्रत्याशी को चुनाव जीतने से पहले मंत्री बनाया था ताकि उनकी जीत सुनिश्चित की जा सके।
राज्यमंत्री सुरेंद्र पाल टीटी को जिताने के लिए न केवल मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने खुद वहां जाकर जनसभाएं की बल्कि पानी बिजली से लेकर तमाम समस्याओं के समाधान के आश्वासन भी दिए। उनके साथ ही प्रदेशाध्य्क्ष डॉ. सी. पी. जोशी भी जनसभाएं करके आए। पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेंद्र राठौड़ लगातार टीटी का चुनाव संभाल रहे थे बल्कि यूं कहें कि टीटी को चुनाव जिताने का जिम्मा उन पर ही था। पूर्व प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया भी करणपुर में पूरी जी जान से जुटे हुए थे।
दावा किया जा रहा है कि सुरेंद्र पाल सिंह टीटी की हार का कारण बिना चुनाव जीते उन्हें मंत्री बनाना माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि टीटी को अगर मंत्री नहीं बनाया जाता तो शायद वे चुनाव जीत जाते और भाजपा की इतनी बड़ी किरकिरी नहीं होती।
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सचिन पायलट का जलवा बरकरार
इधर, कांग्रेस ने यहां से पूर्व विधायक गुरमीत सिंह कुन्नर का चुनाव के दौरान आकस्मिक निधन हो जाने के कारण रणनीतिक रूप से उनके पुत्र रुपिंदर सिंह उर्फ रूबी कुन्नर को प्रत्याशी बनाया। कांग्रेस को उम्मीद थी रूबी कुन्नर को सहानुभूति का फायदा मिल सकता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यूं तो रुपिंदर सिंह कुन्नर को जिताने में प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा समेत कई कांग्रेसियों ने कड़ी मेहनत की है। लेकिन, इस जीत का श्रेय पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट को दिया जाना चाहिए। क्योंकि पायलट की जनसभा से ही आभास हो गया था कि रुपिंदर सिंह चुनाव जीत रहे हैं। अब तो पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समेत तमाम कांग्रेसी नेताओं ने कुन्नर को जीत की बधाई दे दी है।