राजस्थान में बीजेपी के संगठन चुनाव चल रहे हैं, और ये चुनाव राज्य में पार्टी की आंतरिक राजनीति और नेताओं के बीच की खींचतान के चलते कुछ खास मुद्दों पर अटक गए हैं। प्रदेश में 44 जिलों के संगठनात्मक दृष्टिकोण से चुनाव हो रहे हैं, जिनमें से 27 जिलों में जिलाध्यक्ष का निर्वाचन हो चुका है। लेकिन, 17 जिलों में चुनाव में पेंच फंसा हुआ है, विशेष रूप से उन जिलों में जहां पार्टी के दिग्गज नेताओं का प्रभाव है। इन जिलों में बड़े नेताओं के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और स्थानीय नेताओं की खींचतान के कारण जिलाध्यक्ष का चुनाव अटक गया है।
दिग्गज नेताओं के क्षेत्र में अटका चुनाव
राजस्थान के जिन जिलों में जिलाध्यक्ष का चुनाव अटका हुआ है, उनमें कई ऐसे जिले हैं जो बीजेपी के बड़े नेताओं के निर्वाचन क्षेत्र हैं। इनमें जयपुर शहर, जयपुर देहात उत्तर, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, झालावाड़, धौलपुर, सवाई माधोपुर, दौसा और बीकानेर शहर, बूंदी जैसे महत्वपूर्ण जिले शामिल हैं, जहां नेताओं के बीच आपसी सहमति की कमी के चलते चुनाव में देरी हो रही है।
- जयपुर शहर- विधायकों की नहीं बनी सहमति
जयपुर शहर में राघव शर्मा जिलाध्यक्ष हैं, और इस बार नगर निगम ग्रेटर डिप्टी मेयर पुनीत कर्नावट का नाम जिलाध्यक्ष पद के लिए तय माना जा रहा था। लेकिन, स्थानीय विधायकों में उनके नाम पर सहमति नहीं बन पाई। पुनीत कर्नावट को मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का करीबी माना जाता है, लेकिन विधायक कालीचरण सराफ और अन्य विधायकों को उनके नाम पर सहमति नहीं थी। इसके अलावा, विमल अग्रवाल और राजेश तांबी के नाम भी चर्चा में थे, लेकिन इन पर भी सभी विधायकों में सहमति नहीं बन पाई।
- जयपुर देहात उत्तर- स्थानीय नेता सहमत नहीं
जयपुर देहात उत्तर में श्याम शर्मा का नाम जिलाध्यक्ष के लिए चर्चा में है, लेकिन चौमूं से बीजेपी प्रत्याशी रामलाल शर्मा इसके खिलाफ हैं। इस असहमति के कारण श्याम शर्मा का पुनः जिलाध्यक्ष बनने का रास्ता मुश्किल हो गया है।
- दौसा- मंडल अध्यक्ष ही पूरे नहीं बने
दौसा जिले में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती मंडल अध्यक्षों का चुनाव है। दौसा में 27 मंडल अध्यक्षों में से केवल 11 ही नियुक्त हो पाए हैं। बीजेपी के संविधान के अनुसार, आधे से ज्यादा मंडल अध्यक्ष बनने पर ही जिलाध्यक्ष का चुनाव किया जा सकता है। यहां के स्थानीय नेताओं की आपसी खींचतान के चलते एक भी मंडल अध्यक्ष का चुनाव नहीं हो पाया है, और इसी कारण जिलाध्यक्ष का चुनाव भी अटका हुआ है।
- झालावाड़- नए चेहरे की तलाश बनी चुनौती
झालावाड़ में वसुंधरा राजे के करीबी संजय जैन पिछले 9 साल से जिलाध्यक्ष पद पर काबिज हैं, लेकिन पार्टी का संविधान किसी व्यक्ति को दो कार्यकाल से ज्यादा समय तक इस पद पर रहने की अनुमति नहीं देता। इसके कारण पार्टी के सामने अब एक नए चेहरे की तलाश की चुनौती है।
- बारां- पार्टी की बैठक तक नहीं हुई
बारां जिले में 11 महीने पहले ही नंदलाल सुमन को जिलाध्यक्ष बनाया गया था, जो वसुंधरा राजे गुट से आते हैं। बारां, झालावाड़ लोकसभा क्षेत्र में आता है, और यहां भी बीजेपी के भीतर सत्ता संघर्ष की स्थिति बनी हुई है। अब तक पार्टी ने जिलाध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर कोई बैठक भी आयोजित नहीं की है।
- सवाई माधोपुर- मंडल अध्यक्ष नहीं बनने से अटका निर्वाचन
सवाई माधोपुर जिले में स्थानीय नेताओं की आपसी असहमति के कारण अब तक मंडल अध्यक्षों की घोषणा नहीं हो सकी है। इसके कारण जिलाध्यक्ष का चुनाव भी अटका हुआ है। यह जिले के मंत्री किरोड़ीलाल मीणा का विधानसभा क्षेत्र है, और उनकी सहमति के बिना पार्टी यहां आगे नहीं बढ़ पा रही है।
- चित्तौड़गढ़- सांसद और विधायक में खींचतान
चित्तौड़गढ़ जिले में सांसद सीपी जोशी और विधायक चंद्रभान सिंह आक्या के बीच आपसी खींचतान के चलते जिलाध्यक्ष के नाम पर सहमति नहीं बन पा रही है। यहां मंडल अध्यक्षों का निर्वाचन हुआ है, लेकिन चित्तौड़गढ़ विधानसभा क्षेत्र में एक भी मंडल अध्यक्ष नहीं बन पाया है। इसके अलावा, जिले के अन्य विधायक भी किसी एक नाम पर सहमत नहीं हो पा रहे हैं।
- प्रतापगढ़- स्थानीय नेताओं की गुटबाजी हावी
प्रतापगढ़ में भी स्थानीय नेताओं के बीच गुटबाजी के चलते पार्टी जिलाध्यक्ष का निर्वाचन नहीं करवा पा रही है। इस जिले में आधा दर्जन नेताओं ने जिलाध्यक्ष पद के लिए दावेदारी पेश की है, और पार्टी किसी एक नाम पर सहमति नहीं बना पा रही है।
- बूंदी- मजबूत नेता पर नहीं बन रही एक राय
बूंदी जिला पहले बीजेपी का गढ़ हुआ करता था, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में यहां की सभी तीन सीटें कांग्रेस के खाते में गईं। इस बार पार्टी यहां किसी मजबूत नेता को जिम्मेदारी देना चाहती है, लेकिन स्थानीय नेताओं की गुटबाजी के चलते पार्टी निर्णय नहीं ले पा रही है।
- बीकानेर शहर- दावेदारों की खींचतान आई आड़े
बीकानेर शहर में दावेदारों के बीच खींचतान के कारण पार्टी जिलाध्यक्ष का चुनाव नहीं करवा पा रही है। यहां वैश्य समुदाय के तीन नेता दावेदार हैं, जिनमें महावीर रांका और मोहन सुराना का नाम प्रमुख है। इन दोनों के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के कारण सहमति नहीं बन पा रही है।
- डूंगरपुर- 28 नाम आए, लेकिन सहमति नहीं बनी
डूंगरपुर जिले में जिलाध्यक्ष पद के लिए 28 आवेदन आए हैं, लेकिन इनमें से किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पाई है। इसके कारण डूंगरपुर में भी जिलाध्यक्ष का चुनाव नहीं हो सका है।
- टोंक- बीच का रास्ता निकालने में लगा समय
टोंक में अजीत मेहता को जिलाध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव था, लेकिन दूसरे गुट ने राजेंद्र पराना को जिलाध्यक्ष बनाना चाहा। पार्टी अब यहां किसी एक नाम पर सहमति बनाने के लिए समय ले रही है।
- करौली- एक भी मंडल अध्यक्ष नहीं बना
करौली जिले में पार्टी एक भी मंडल अध्यक्ष का चुनाव नहीं कर पाई है, जिसके कारण जिलाध्यक्ष का चुनाव अटका हुआ है।
- धौलपुर- समय पर नहीं हो सका मंडल अध्यक्ष का निर्वाचन
धौलपुर जिले में भी मंडल अध्यक्षों का निर्वाचन समय पर नहीं हो पाया, जिससे जिलाध्यक्ष के चुनाव में देरी हो रही है। यह जिला पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का गृह क्षेत्र भी है।
अब निर्वाचन कराने के मूड में नहीं पार्टी
पार्टी अब इन 17 जिलों में से अधिकांश में निर्वाचन कराने के बजाय सीधे जिलाध्यक्ष की नियुक्ति करने की योजना बना रही है। इसके अलावा, प्रदेशाध्यक्ष के चुनाव में भी देरी हो रही है। पार्टी अब सीधे प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव करवा सकती है और नव निर्वाचित प्रदेशाध्यक्ष इन जिलों में जिलाध्यक्षों की नियुक्ति करेंगे।
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प्रदेशाध्यक्ष के चुनाव में भी देरी
बीजेपी में प्रदेशाध्यक्ष के निर्वाचन की डेडलाइन 5 फरवरी थी, लेकिन अभी तक पार्टी ने चुनाव कार्यक्रम जारी नहीं किया है। प्रदेशाध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया तीन दिन की होगी, जिसमें नामांकन, नाम वापसी और जरूरत पड़ने पर चुनाव होंगे। पार्टी के वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ का चुनाव तय माना जा रहा है, लेकिन प्रदेशाध्यक्ष के चुनाव में भी देरी हो रही है, क्योंकि पार्टी चाहती है कि पहले कुछ जिलों में जिलाध्यक्ष का निर्वाचन हो जाए।