जयपुर। राजस्थान के श्रीगंगानगर (Sriganganagar of Rajasthan) जिले के सूरतगढ़ के राजियासर थाना इलाके के गांव सांवलसर की कहानी रूह को कंपा देना वाली है। यहां गैंगरेप के बाद ब्लैकमेलिंग से परेशान (Troubled by blackmailing after gangrape) होकर भाभी और ननद ने अपनी जिंदगी खत्म कर ली (Sister-in-law and sister-in-law ended their lives)। करीब तीन महीने पहले भाभी ने आग लगाकर आत्महत्या कर ली थी, जबकि चार दिन पहले मजबूर नंनद ने फांसी का फंदा लगाकर खुदकुशी कर ली। इसका आरोप गांव के तीन लड़कों पर लगा है।
मृतका के भाई ने बताया कि गांव के तीन युवक पिछले कुछ समय से उसकी पत्नी को परेशान कर रहे थे। उन्होंने उसकी पत्नी का अश्लील वीडियो बना लिया था, जिसे वायरल करने की धमकी देकर लगातार उसके साथ गैंगरेप कर रहे थे। इसके बाद उन्होंने पत्नी से उसकी ननद से भी बात करवाने के लिए कहा था। मजबूर होकर उसने ननद से बात करा दी, उन लोगों ने उसे भी भाभी की इज्जत का वास्ता देकर अपने पास बुलाया और अपनी हवस का शिकार बनाया।
इस तरह तीनों युवक उन दोनों महिलाओं का लगातार शारीरिक शोषण (physical torture) करने लगे। इससे तंग आकर भाभी ने एक दिन खुद को आग लगा ली। उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। कुछ दिनों बाद उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई। ये दिसंबर 2023 की बात है। इस मामले के खुलासे के बाद पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ केस तो दर्ज कर लिया, लेकिन उनके खिलाफ कार्रवाई से बचती रही। इधर आरोपियों का हौंसला इतना बढ़ गया कि भाभी की मौत के बाद भी ननद को परेशान करते रहे।
इससे दुखी होकर ननद ने अपने परिजनों को सारी बात बता दी। परिवार के लोग थाने पहुंचे, पीड़ित लड़की का बयान दर्ज किया जाने लगा। इस दौरान पुलिस अधिकारी पीड़िता के साथ ऐसे सलूक कर रहे थे, जैसे कि वो खुद आरोपी हो। डीएसपी ऐसे सवाल पूछ रहे थे जिसे सुन कर पीड़िता को लग रहा था जैसे एक बार फिर उसका बलात्कार हो रहा है। पुलिसिया व्यवहार से तंग आकर पीड़िता के परिजन गंगानगर एसपी गौरव यादव के पास पहुंचे।
एसपी को पूरे मामले से अवगत कराया, उनके आदेश के बाद इस मामले की जांच शुरू की गई। लड़की के साथ गैंगरेप हुआ था, जाहिर है मेडिकल रिपोर्ट से उसकी सच्चाई सामने आ जाती। लेकिन कानून को अपने हिसाब से नचाने वाले डिप्टी एसपी और उनके बहादुर पुलिस वालों की बेशर्मी देखिए कि मेडिकल टेस्ट के लिए पीडिता को उसके गांव से श्रीगंगानगर अकेले उस दिन अस्पताल भेजते हैं, जिस दिन अस्पताल में छुट्टी थी, कोई डॉक्टर तक नहीं था। पूरा दिन खराब करके पीड़िता वापस लौट आई, अगले दिन फिर पीड़िता शहर के अस्पताल पहुंची।
वहां उसके साथ ऐसा सलूक किया जैसे वो खुद रेपिस्ट हों। हमाम के नंगेपन का आलम देखिए खाकी के साथ-साथ सफेद कोट वाले डॉक्टर भी वैसे ही कानून का तमाशा बना रहे थे, जैसे खाकी वाले बड़े बाबू उन्हें बताते जा रहे थे। पीड़िता पढ़ी लिखी थी, उसने निर्भया की कहानी भी सुन रखी थी। उसे लगता था कि अब देश बदल चुका है। पुलिस वाले किसी बलात्कारी को नहीं छोड़ेंगे, इसलिए वो तमाम दुश्वारियों के बावजूद गुनहगारों को सजा दिलाना चाहती थी।
पीड़िता की लड़ाई के आगे कानून को झुकना पड़ा। तीन में से दो गुनहगारों के खिलाफ गैंगरेप का केस दर्ज कर पुलिस ने उन्हें जेल भी भेज दिया। लेकिन तीसरे और सबसे ताकतवर गुनहगार की लड़ाई अब भी जारी थी, तीसरा गुनहगार कोई मामूली गुनहगार नहीं है, राज्य के एक मंत्री का रिश्तेदार है। लिहाजा पुलिस ने अपना पूरा फर्ज निभाते हुए उसे इस केस से दूर कर दिया। पीड़िता उसे भी सजा दिलाने के लिए लड़ती रही, लेकिन इसमें कोई उसका साथ नहीं दे रहा था।
उल्टे उसकी वजह से घर और घर के लोगों की परेशानियां बढ़ती जा रही थी, इस बात का अहसास अब पीड़िता को भी होने लगा था। लिहाजा तीन अप्रैल को उसने एक आखिरी फैसला लिया। वो अपनी आखिरी बात मीडिया के जरिए देश तक पहुंचाना चाहती थी, इसीलिए उसने तीन अप्रैल की सुबह कुल चार रिपोर्टर को फोन किया, उनको अपनी पूरी कहानी सुना दी। इसके बाद उसी दिन रात करीब 12 घंटे के बाद अपने घर में फांसी के फंदे पर झूल गई।
फांसी पर झूलने से पहले उसने अपनी कलाई भी काट ली थी, वो खुद के जिंदा बच जाने की कोई भी गुंजाइश छोड़ना ही नहीं चाहती थी। शायद वो अंधे बहरे और गूंगे कानून के उकता चुकी थी, उसे यकीन हो चला था कि जो इंसाफ उसे जीते जी नहीं मिल रहा शायद उसकी मौत उसे वो इंसाफ दिला दे।
जिम्मेदारों नाकाबिलियत की वजह से दो लोगों को खुदकुशी करनी पड़ी। जी हां, ननद से पहले उसकी भाभी को भी जब कानून और पुलिस से उसके सुलगते सवालों के जवाब नहीं मिले, तो वो खुद ही जिंदा आग में जल गई। ये कहानी सिर्फ दो मौत की कहानी नहीं है, बल्कि ये खाकी, खादी, कानून, इंसाफ, सिस्टम हर एक के मुंह पर एक झन्नाटेदार थप्पड़ है। तो चलिए जीते जी पीड़िता की जिस कहानी को उसकी तमाम कोशिशों के बावजूद कोई नहीं सुन पाया, उसे सुनते हैं।
यहां से होती है घिनौनी कहानी की शुरूआत
दरअसल, इस कहानी की शुरुआत साल भर पहले होती है, पीड़ित भाभी कॉलेज में पढ़ रही थी। घर से कॉलेज वो बस से जाया करती थी, उसी बस में तीन और लड़के अपने कॉलेज जाया करते थे। इन लड़कों के नाम हैं अशोक, लालचंद और श्योचंद, इनमें से श्योचंद राजस्थान के कैबिनेट मंत्री सुमित गोदारा का रिश्तेदार (Relative of Rajasthan Cabinet Minister Sumit Godara) है। बस में आते जाते तीनों लड़कों से पीड़िता की दोस्ती हो जाती है, एक रोज़ मौका मिलते ही तीनों उसके साथ जबरदस्ती करते हैं।
इस दौरान मोबाइल से उसका अश्लील वीडियो बना लेते हैं, ताकि वो पुलिस या घरवालों से इस बारे में कुछ ना कहे। इसके बाद तीनों ने इसी धमकी के साथ उसको छोड़ देते हैं। दो बच्चों की मां इस हादसे डर गई, उसे लगा कि यदि उसका वीडियो उसके गांव और ससुराल तक पहुंच गया, तो उसकी शादीशुदा जिंदगी खत्म हो जाएगी। लिहाजा वो खामोश हो गई। इसके बाद उसको नोचने खसोटने का ये सिलसिला महीनों तक बदस्तूर चलता रहा।
इज्जत की खातिर पीड़ित अब तक खामोश थी। लेकिन फिर अचानक एक रोज वही तीनों लड़के उसको धमकी देते हैं कि अब वो अपनी ननद से उन्हें मिलाए। उससे फोन पर बात कराए। वरना वीडियो लीक कर देंगे। वो अपना घर टूटने के डर से ननद को सारी बात बता देती है। अब दोनों पूरी तरह से उन तीनों लड़कों के चंगुल में फंस चुकी थी, ननद नहीं चाहती थी कि उसकी भाभी की जिंदगी खराब हो। पर उसे पता नहीं था कि अब खुद उसकी जिंदगी अजाब हो चुकी है।
ये सिलसिला भी महीनों चलता रहा। घर की इज्जत की खातिर दोनों अब तक खामोश थी। लेकिन फिर तभी 23 दिसंबर 2023 को जब ननद-भाभी घर लौट रही थी, तब रास्ते में तीनों लड़के फिर से टकरा जाते हैं। इस बार तीनों पहली बार एक साथ दोनों की आबरू लूटते हैं। लुटती हुई आबरू के बीच भाभी अपने सामने अपनी ननद को भी लुटती देख रही थी। उससे ये बर्दाश्त नहीं हुआ, इसके बाद उसी शाम उसने खुद पर पेट्रोल डाल कर खुद को जिंदा जला लिया।
हालांकि उसकी सास और कुछ लोगों की उस पर नजर पड़ गई और उन्होंने फौरन आग बुझा दी, लेकिन तब तक वो 80 फीसदी झुलस चुकी थी। बाद में उसे अस्पताल ले जाया गया। लेकिन फिर दो महीने बाद 23 फरवरी उसने दम तोड़ दिया। इस बीच भाभी के झुलसने के बाद उसके घरवालों ने बिना सच्चाई जाने उसके ससुरालवालों पर ही उसे जला डालने का आरोप लगाया। इस पर पुलिस ने उसके पति और ननद समेत पूरे घरवालों पर मुकदमा दर्ज कर लिया।
लेकिन मरने से ऐन पहले खुद भाभी ने पूरे गांव वालों के सामने ये बयान दिया कि उसका पति, ननद और ससुराल के लोग बेकसूर हैं। उसने खुद को आग इज्जत की खातिर लगाई थी, उसकी मौत के बाद अब ननद ने भी हिम्मत जुटाई और घरवालों को सारी कहानी बता दी। उसके बाद ननद उन तीन लड़कों के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने थाने गई, तो पुलिस उस पर दबाव डालती है।
पुलिस कहती है कि वो एक या दो लड़के का ही नाम ले, तीनों का नहीं। खास कर उस लड़के का तो बिल्कुल नहीं, जो राज्य के मंत्री का रिश्तेदार है। लेकिन उसकी मौत के बाद उनकी सच्चाई लोगों तक पहुंच जाती है। उनका नजरिया ही बदल जाता है, अब वही लोग उसकी लड़ाई को अपनी लड़ाई बना कर पुलिस के खिलाफ सड़क पर उतर आए। पुलिस को भी अहसास था कि दोनों मौत का असली जिम्मेदार उन तीनों के अलावा खुद पुलिस भी है।
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लिहाजा, अब खुद पुलिस के पास भी अपने बेशर्म चेहरे को छुपाने का कोई रास्ता नहीं बचा था, मजबूरन उन्हें उस तीसरे गुनहगार को भी गिरफ्तार करना ही पड़ा। जी हां, ननद की मौत के ठीक 24 घंटे बाद उस तीसरे गुनहगार को पुलिस गिरफ्तार कर लेती है, जिसे वो अब तक खुद ही भगाती और बचाती रही थी। पता नहीं ये सवाल पूछना चाहिए कि नहीं, मालूम भी नहीं है कि ये सवाल अच्छा है या बुरा है। पर जेहन से ये सवाल जाने का नाम ही नहीं ले रहा है। सवाल ये कि यदि ननद ने अपनी जान न दी होती, तो क्या ये तीसरा गुनहगार पकड़ा जाता? क्या ननद-भाभी को इंसाफ मिल पाता?