जयपुर। राजधानी जयपुर में सड़क किनारे लगने वाली नगीना मंडी शहर के जेम्स और ज्वेलरी कारोबार के लिए बड़ा माध्यम (Nagina Mandi city’s big medium for gems and jewelry business) है। हर शाम करीब 4 बजे सड़क किनारे ठीक वैसे ही सौदागर आते हैं, जैसे किसी सड़क के फुटपाथ पर थड़ी और ठेले के साथ सब्जी बेची जाती है। यकीन करना मुश्किल है, पर हकीकत यह है कि सालों से चली आ रही इस नगीना मंडी में बिना किसी शोरूम के लोग रोजाना लाखों का कारोबार करते हैं। यह नगीना मंडी सैकड़ों लोगों के लिए रोजी-रोटी का माध्यम बनी हुई है।
जयपुर शहर की चारदीवारी इलाके को जेवरात के काम का गढ़ माना जाता है। यहां जौहरी बाजार और आसपास के इलाके में गद्दियों पर नगीने बेचने से लेकर नगीनों को तैयार करने का काम भी बड़े पैमाने पर होता है। इन सबके बीच जौहरी बाजार से महज आधा किलोमीटर की दूरी पर नवाब के चौराहे पर लगने वाली नगीना मंडी कि खास बात यह है कि मंडी में सड़क किनारे पर ही खरीदार और सौदागर के बीच व्यापार होता है। महज चार से पांच घंटे के बीच सैकड़ों लोग लाखों रुपए का लेन-देन यहां पर निपटा देते हैं।
मंडी में डायमंड कट का पन्ना बेचने आए व्यापारी मोहम्मद अख्तर का कहना है कि महंगे से महंगा और सस्ते से सस्ता माल यहां पर बिक जाता है। वे खुद जामिबिया के एमरल्ड का सौदा करने के लिए यहां पहुंचे थे, जिसका इस्तेमाल गुणवत्ता के लिहाज से जेवरात की जड़ाई में किया जाता है। उन्होंने बताया कि ज्यादातर लोग जेवरात के कारोबार में पन्ने का ही इस्तेमाल करते हैं, क्योकि इसमें क्लियरीटी ज्यादा होती है और सोने में पन्ने का हरा रंग चार चांद लगा देता है। जिससे रोशनी में इसकी चमक देखते ही बनती है। स्थानीय निवासी अख्तर अली ने बताय कि वे चालीस साल से भी ज्यादा समय से इस मंडी को देख रहे हैं, जहां रोजाना शाम को मंडी में नगीनों का कारोबार होता आया है।
नगीना बाजार में रोजी-रोटी के लिए आने वालों में ज्यादातर कारीगर स्तर के लोग होते हैं, जो अपनी छोटी-छोटी बचत से कच्चे माल को इसी मंडी से खरीदते हैं। अगले दिन पूरी मेहनत के साथ कच्चे माल की फिनिशिंग के बाद उसे चमकदार नगीने में तब्दील करने के बाद इसी मंडी में बेच देते हैं। इनसे माल खरीदने वालों में ज्यादातर बिचौलिये होते हैं, जो अपने तजुर्बे के आधार पर कुछ पैमाने में इन चमकीले पत्थरों की परख करते हैं और बड़े कारोबारियों तक माल पहुंचाते हैं। सौदे के दौरान यह देखा जाता है कि पत्थर का आकार कैसा है, उसके रंग में कितनी ज्यादा सफाई या क्लियरिटी है, ज्यामितीय संरचना या कहें कि स्टोन की क्रिस्टल क्वालिटी कैसी है और इन सब पैमानों को ध्यान में रखने के बाद कारोबारी नजदीक की दुकानों में नग का वजन करवाते हैं और कैरेट के हिसाब से रेट तय करके सौदा करते हैं।
जयपुर के नगीना कारोबारी सलीम अहमद खुद की गद्दी चलाते हैं, नगीना मंडी पर भी नजर रखते हैं, वे बताते हैं कि छुटपन से ही उन्हें हर शाम सजने वाले चमकीलें पत्थरों के कारोबार की यादें ताजा है। कई पीढ़ियों से उनका परिवार इस काम में लगा हुआ है, सलीम के मुताबिक दुनियाभर में शायद ही कोई ऐसा प्रीशियस स्टोन होगा, जिसका सौदा आज तक जयपुर की सड़कों पर लगने वाली इस नगीना मंडी में नहीं हुआ हो। कच्चे माल को लेने के बाद कारीगर उसकी क्वालिटी के आधार पर उसे तराशते हैं फिर यह माल बड़े-बड़े शोरूम्स के जरिए विदेशों तक जाता है। सैकड़ों लोगों की रोजी-रोटी का माध्यम इस नगीना मंडी पर निर्भर है।